दिनों दिन बढ़ रही है भारत-तिब्बत सीमा को जोड़ने वाली गरतांगगली को देखने वाले पर्यटकों की तादाद
जाड गंगा की पहाड़ियों पर स्थित गरतांगगली समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर भारत-चीन सीमा को जाने वाली चट्टानों को काटकर यह सीढ़िया बनाई गई थी जो कि आज भी चीन तिब्बत से भारतीय व्यापार की गवाही दें रही है।

कुछ वर्षों पूर्व तक ये सीढ़ियां अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही थी किन्तु वर्तमान समय में उत्तराखंड सरकार ने पर्यटन सर्किट के अंतर्गत जिला प्रशासन ने लोक निर्माण विभाग के द्वारा से 64 लाख की लागत से इनका सौंदर्यीकरण कर इस पौराणिक धरोहर को सँजोह कर पर्यटकों की आवाजाही के लिए खोल दिया है।

और यहां पर अब देशी व विदेशी पर्यटकों की आवाजाही शुरू हो गयी है। जो कि हर्षिल घाटी के पर्यटक व्यवसाहियों के लिए किसी अच्छी खबर से कम नही है।

आपको बतादें 17वीं शताब्दी में पेशावर के पठानों ने समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी की खड़ी पहाड़ी को काटकर दुनिया का सबसे खतरनाक रास्ता बनाया था. करीब 150 मीटर लंबी लकड़ी से बनी यह सीढ़ीनुमा गड़तांगगली भारत-तिब्बत व्यापार का साक्षी रहा है. उत्तरकाशी जिले में जाड़ गंगा घाटी में स्थित सीढ़ीनुमा यह रास्ता दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में एक है।

1962 से पहले भारत में अव्यापार के लिए आनेवाले तिब्बत के व्यापारी याक, घोड़ा-खच्चर एवं भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आना जाना करते रहे।

1962 के भारत-चीन युद्ध से पहले व्यापारी इस रास्ते से ऊन, चमड़े से बने कपड़े व नमक लेकर बाड़ाहाट पहुंचते थे. युद्ध के बाद इस मार्ग पर आवाजाही बंद हो गई, लेकिन सेना का आना-जाना जारी रहा. करीब दस वर्ष बाद 1975 में सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल बंद कर दिया है. कुछ वर्षों तक ये सीढ़िया रखरखाव के अभाव में बदहाल रही है परन्तु एकबार फिर उत्तराखंड सरकार ने जिला प्रशासन के सहयोग से इस मार्ग को पुनर्जीवित कर दिया है। इस सीढ़ीनुमा रास्ते को देखने के लिए पर्यगकों की तादाद दिनों दिन बढ़ रही है जिसका लाभ इस क्षेत्र के पर्यटक व्यवसाहियों को मिलने वाला है।

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