शिव महापुराण कथा के दसवें दिन आचार्य प्रभात नौटियाल ने शिव महापुराण का महात्म्य बताया ,कथा के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वालो को किया सम्मानित

राजेश रतूड़ी
उत्तरकाशी : काशी विश्वनाथ मन्दिर प्रांगण में आयोजित शिव महापुराण कथा के दसवें दिन कथा वक्ता आचार्य प्रभात नौटियाल ने शिव महापुराण के महात्म्य के बारे में कथा के माध्यम से विस्तार पूर्वक बताया उन्होंने कथा में गुरु शिष्य की परम्पराओं पर आधुनिक व वर्तमान स्थिति का विश्लेषण कर शिष्य और गुरु की अलग अलग व्याख्या की उन्होंने बताया कि कोई भी कार्य कल पर नहीं छोड़ना चाहिए क्यों कि कल कभी नहीं आता है। जिस तरह पेड़ की केवल जड़ को सोचने से पूरा पेड़ पोषित होता है उसी तरह आत्मा को भागवत नाम से सिंचित करने से भवसागर में लिप्त देह भी पोषित होकर ईश्वर के श्रीचरणों को प्राप्त हो जाते है। यदि आत्मा की मुक्ति चाहते हो तो आत्मा रूपी लिंग में विराजमान भगवान शिव को सिंचित करना है क्यो कि शरीर का मूल आत्मा है यदि शरीर से आत्मा निकल जाय तो शरीर स्थूल व मृत हो जाएगा । संसार में विज्ञान के ज्ञान को विस्तृत ज्ञान कहा जाता है वैज्ञानिक फिर भी कहते है कि खोज चल रही है जिसने यह संसार बनाया होगा सोचो वो कारीगर केसा होगा उस कारीगर की बनाई हुई हर जिज अनोखी है। जिसकी बनाई काई चीजों का विज्ञान भी पार नहीं पा सका है। जिसको समझने के लिए इंसान को मति बहुत कम है। जिस प्रकार जुगनू का प्रकाश सूर्य के प्रकाश के आगे कुछ भी नहीं है। जब ईश्वर को जानने को जिज्ञासा हो तो भगवान खुद ही बताते है कि में कहा हूं इसके लिए मंथन करना होगा जिस प्रकार हम गाय माता से दूध का दोहन करते है और दूध से दही,मक्खन ,मठठा और घी बनता है और घी से हम दिया जलाकर अंधकार को दूर कर प्रकाश कर सकते है उसी प्रकार परमात्मा के साक्षात्कार के लिए मंथन करना पड़ेगा जिस तरह दूध का मंथन किया जाता है। मंथन के पहले हलाहल यानी विष निकलता है मंथन करते करते रत्न निकलने शुरू हो जाते है जिस प्रकार समुद्र मंथन की कथा में बताया गया है। आचार्य प्रभात ने शिव महापुराण के अनेकों प्रसंगों की कथा का व्याख्यान किया। कथा के दौरान जिले में काम करने वाले उत्कृष्ट पुलिस कर्मी, कर्मचारियों,पर्यावरण मित्रो और अन्य सेवादारों को व्यास पीठ के माध्यम से आचार्य प्रभात नौटियाल के हाथो से सम्मानित किया गया।






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