सरकार के द्वारा मदरसों में वैकल्पिक विषय संस्कृत पड़ाए जाने को लेकर धर्माचार्य डॉ कुलानन्द रतूड़ी ने किया विरोध

राजेश रतूड़ी
उत्तरकाशी :  उत्तरकाशी जिले के भटवाड़ी ब्लॉक अन्तर्गत रैथल गांव के सेवा निवृत शिक्षक व धर्माचार्य डॉ  कुलानन्द रतूड़ी ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर सरकार के नाम सन्देश दिया है। उन्होंने कहा है  कि उत्तराखंड सरकार द्वारा मदरसों में वैकल्पिक शिक्षा के रूप में संस्कृत पढ़ाने के निर्णय से मैं व्यक्तिगत रूप से असहमत हूं। मेरा मानना है कि सरकार का मुख्य कार्य व्यवस्थाएं चलाना है, न कि किसी धर्म या आस्था पर अपनी नीतियां थोपना। किसी भी बड़े निर्णय से पहले समाज के बुद्धिजीवियों और आम जनता की राय लेना आवश्यक है।
      सरकारों का काम धर्म या जाति आधारित व्यवस्थाओं में अनावश्यक हस्तक्षेप करना नहीं है। यदि किसी धर्म या संप्रदाय की कोई प्रथा जनहित में नहीं है, तो उसे बदलने की प्रक्रिया भी न्यायपूर्ण और विचार-विमर्श के आधार पर होनी चाहिए। अन्यथा, ऐसे फैसलों का विरोध स्वाभाविक है। हाल ही में सरकार द्वारा मदरसा एक्ट में बदलाव का प्रस्ताव आया है, जिसका मदरसों से जुड़े लोग एकजुट होकर विरोध कर रहे हैं। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी निर्णय का विरोध धर्म या जाति के आधार पर न हो। हमारा देश विभिन्न धर्मों—हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई—की एकता के लिए विश्व प्रसिद्ध है, और यही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।
        वर्तमान में मदरसों में संस्कृत पढ़ाने का निर्णय सही प्रतीत नहीं होता। यदि भविष्य में संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थी संस्कृत शिक्षक, पंडित, या वेदाचार्य बनने की दावेदारी करेंगे, और उनका विरोध होगा, तो यह स्थिति जटिल हो जाएगी। इसलिए, मेरा सुझाव है कि सरकार इस निर्णय पर पुनर्विचार करे। मदरसों में संस्कृत के बजाय हिंदी, अंग्रेज़ी, और अन्य एनसीईआरटी के विषय पढ़ाए जाने चाहिए। देहरादून के कुछ स्कूलों में तो संस्कृत और हिंदी जैसे विषय भी बच्चों को नहीं पढ़ाए जा रहे हैं, और हम मदरसों में संस्कृत पढ़ाने की बात कर रहे हैं। यह कहां तक सही है? मैं बुद्धिजीवियों को इस विषय पर अपनी राय देने का आग्रह करता हूं ताकि वे इस निर्णय पर गंभीरता से विचार करें और सरकार से स्पष्टता की मांग करें।
           इसके अलावा, सरकार का प्राथमिक कार्य जनता को रोजगार, अच्छी सुविधाएं, सड़कों और व्यवस्थाएं प्रदान करना है, न कि धर्म और जाति पर आधारित पुरानी व्यवस्थाओं को बदलना। उत्तराखंड में एक सशक्त पर्यटन और रोजगार नीति की आवश्यकता है। संविदा पर काम कर रहे कर्मचारियों को स्थाई नियुक्ति दी जानी चाहिए, क्योंकि संविदा पर दी गई सेवाओं की अवधि सीमित होनी चाहिए। राज्य के अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी है, स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं, और सरकारी भवनों की स्थिति दयनीय है। राज्य में बढ़ती नशे की लत और अतिक्रमण की समस्या पर भी ठोस नीति बनाई जानी चाहिए। देहरादून जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में बड़ी इमारतों की अनुमति देना सही नहीं है। राज्य के सभी 13 जिलों में उच्च स्तरीय चिकित्सा सुविधाएं, ब्लड बैंक, कोचिंग संस्थान और डिग्री कॉलेज होने चाहिए ताकि पलायन पर रोक लग सके।
       सरकार को पौराणिक व्यवस्थाओं में छेड़छाड़ करने के बजाय, राज्य की बुनियादी समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।







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